The Sermom at Benares
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The Sermom at Benares
• Betty Renshaw
Gautam Buddha `(563 B.C.-483 B.C.) began life as a prince named Siddhartha Gautama, in northern India. At twelve, he was sent waay for schooling in the Hindu sacred scriptures and four years later returned home to marry a princess. They had a son and lived for ten years as befitted royalty. At about the age of twenty-five, the Prince, heretofore shielded from the sufferings of the world, while out hunting chanced upon a sick man, then a funeral procession, and finally a monk begging tor alms. These sights so moved him that he at once went out into the world to seek enlightenment concerning the sorrows he had witnessed. He wandered for seven years and finally sat down under a peepal tree, where he vowed to stay until enlightenment came. Enlightened after seven days, he renamed the tree the Bodhi Tree (Tree of Wisdom ) and began to teach and to share his new understandings. At that point he became known as the Buddha (the Awakened or the Enlightened). The Buddha preached his first sermon at the city of Benares, most holy of the dipping places on the River Ganges; that sermon has been preserved and is given here. It reflects the Buddha's wisdom about one inscrutable kind of suffering.
गौतम बुद्ध ( 563 ई ० पूर्व से 483 ई ० पूर्व ) ने उत्तरी भारत में सिद्धार्थ गौतम नामक राजकुमार के रूप में जीवन शुरू किया था । 12 वर्ष की आयु में , उसे हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थों का अध्ययन करने के लिए बाहर भेज दिया गया और चार वर्ष के बाद वह एक राजकुमारी से विवाह करने के लिए वापस घर लौटा । उनको एक पुत्र हुआ और गौतम दस वर्ष तक राजसी ढंग से रहता रहा । लगभग 25 वर्ष की उम्र में राजकुमार , जिसे अब तक इस संसार के दुःखों से बचाकर रखा गया था , वह शिकार खेलने के लिए बाहर गया हुआ था , उसे एक बीमार आदमी से मिलने का मौका मिला , फिर एक बूढ़े आदमी से , फिर एक अन्तिम संस्कार के लिए जाते हुए शव यात्रा से और अन्त में भीख मांगते हुए एक भिक्षुक से मिलना हुआ । इन दृश्यों ने उसे इतना प्रभावित कर दिया कि वह तुरन्त ही उन दुःखों के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए , जो उसने देखे थे , संसार का दौरा किया । वह सात वर्ष तक घूमता रहा और अन्त में एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गया , यहाँ उसने उस समय तक बैठे रहने की शपथ ली जब तक कि उसे आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती । ज्ञान प्राप्त करने के सात दिन के बाद , उसने उस पेड़ का नाम बोधी वृक्ष ( ज्ञान का पेड़ ) रखा और उसने अपनी नये सिद्धान्तों की शिक्षा देना शुरू कर दिया । उस समय से उन्हें बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा ( जिसका मतलब है जागरूक और ज्ञानी ) । बुद्ध ने अपना पहला उपदेश बनारस शहर में दिया , जो गंगा नदी के किनारे पर सबसे पवित्र स्थल है , वह उपदेश सुरक्षित है और यहाँ पर दिया गया है । यह एक अनसमझे दुःख के बारे में बुद्ध की समझदारी ( ज्ञान ) को प्रतिबिम्बित करता है
Kisa Gotami had an only son, and he died. In her grieg she carried the dead child to all her neighbours, asking them for medicine, and the people said, "She has lost her denses. The boy is dead."
किसा गौतमी का एक पुत्र था और वह मर गया । अपने दुःख में वह अपने मृतक बच्चे को सभी पड़ोसियों के पास ले गई , सभी से उसने दवा पूछी , और लोगों ने कहा , " वह अपना होश गंवा बैठी है । उसका बेटा मर गया है ।
At length, Kisa Gotami met a man who replied to her request, "I cannot give me thee medicine for they child, but I know a physician who can."
अन्त में , किसा गौतमी एक व्यक्ति से मिली , जिसने उसकी प्रार्थना का जवाब दिया : “ मैं तुम्हें अपने बच्चे के लिए दवाई नहीं दे सकता , परन्तु मैं एक ऐसे डॉक्टर को जानता हूँ , जो दवाई दे सकता है । "
And the girl said. "Pray tell me, sir; who is it?" And the man replied, "Go to Sakyamuni, the Buddha."
और लड़की ने कहा , " श्रीमान जी , मेरी आपसे प्रार्थना है कि मुझे यह बताएं कि वह कौन है ? " और इस आदमी ने जवाब दिया , " साक्यमुनि , बुद्ध के पास जाओ । "
Kisa Gotami repaired to the Buddha and cried, "Lord and Master, give me the medicine that wiil cure my boy."
किसा गौतमी बुद्ध के पास गई और चिल्लाई , “ भगवान और स्वामी , मुझे वह दवा दो जो मेरे बेटे को ठीक कर दे । "
The Buddha answered, "I want a handful of mustardseed." And when the girl in her joy promised t procure it, the Buddha added, "The mustard-seed must be taken from a house where no one has lost a child, husband, parent or friend."
बुद्ध ने जवाब दिया , " मुझे एक मुट्ठी भर सरसों के बीज चाहिए । " और जब लड़की ने बड़ी प्रसन्नता के साथ इसे लाने का वायदा किया , तो बुद्ध ने आगे कहा , " सरसों के बीज एक ऐसे घर से प्राप्त किए जाने चाहिए जिसने एक बच्चे , पति , माता - पिता अथवा मित्र को न खोया हो । "
Poor Kisa Gotami now went from house to house, and the people pitied her and said, "Here is mustard seed; take it!" But when she asked, "Did a son or daughter, a father or mother, die in your family?" they answered her, " Alas! the living are few, but the dead are many. Do not remind us of our deepest frief." And there was no house but some beloved one had died in it.
बेचारी किसा गौतमी अब घर - घर गई और लोगों ने उस पर दया दिखाई और कहा , " यहां सरसों के दाने ( बीज ) हैं , इन्हें ले लो । " लेकिन जब उसने पूछा , “ क्या कोई पुत्र या पुत्री , एक पिता या माता तुम्हारे घर में मरे हैं ? " वे उसे उत्तर देते , " बड़े दुःख की बात है कि कुछ जीवित हैं , लेकिन अनेकों मरे हैं , हमें हमारे गहरे दुःख की याद मत दिलाओ । " और ऐसा कोई घर नहीं था जहाँ किसी प्रियजन की उसमें मौत न हुई हो ।
Kisa Gotame became weary and hopeless, and sat down at the wayside watching the lights of the city, as they flickered up and were extinuished again. At last the darkness of the noght reigned everywhere. And she considered the fate of men, that their lives flicker up and are extinguished again. And she thought to hersel, " How selfish am I in my grief! Death is common to all; yet in this valley of desolation there is a path that leads him to immortality who has surrrendered all selfishness."
किसा गौतमी थक गई और निराश हो गई और रास्ते में किनारे पर शहर की रोशनी को देखती हुई बैठ गई । वह रोशनी को देखती हुई उसे बार - बार जलते हुए और बुझते हुए देख रही । अन्त में सर्वत्र रात के अंधेरे का साम्राज्य हो गया और उसने व्यक्तियों के भाग्य के बारे में विचार किया , कि उनके जीवन चमकते हैं और उसने अपने आप में सोचा , " मैं अपने दुःख में कितनी स्वार्थी हूँ । मृत्यु तो सभी के लिए सामान्य है । तो भी निराशाओं से भी इस संसार रूपी घाटी में एक रास्ता है जो उसे अमरता की तरफ ले जाता है , जो अपना स्वार्थ त्याग देता है । "
The Buddha said, "The life of martals in this world is troubled and brief and combined with pain. For there is not any neans by which those that have been born can avoid dying; after reaching old age there is death; of such a nature are living beings. As ripe fruits are early in danger of ralling, so mortals when born are always in danger of death. As all earthen vessels made by the potter end in being broken, so is the life of mortals. Both young and adult, both those who are fools and those who are wise, all fall into the power of death; all are subject to death.
बुद्ध ने कहा , इस संसार में नश्वरो का जीवन दुखों से भरा हुआ क्षणिक पीड़ा से पूर्ण है क्योंकि ऐसा कोई साधन नही है जिसके द्वारा जो पैदा हुआ है , वह मृत्यु से बच सके ; बुढ़ाप आने के बाद मौत आती है , सभी सजीव प्राणियों का स्वभाव ( कृति ) यही है । जिस प्रकार पके हुए फलों का गिरने का खतरा होता है , उसी प्रकार जब जीव पैदा होते हैं तो उनको मृत्यु का खतरा होता है । जिस प्रकार सभी मिट्टी के बर्तन का जो तुम्हारे ( कुम्हार ) द्वारा बनाए जाते । अन्त में टूट जाते हैं उसी प्रकार जीवन होता है । युवा एवं प्रौढ़ , वे दोनों मूर्ख और जो बुद्धिमान है सभी मृत्यु के सामने टूट जाते हैं; सभी मौत के अधीन है ।
"Of those who, overcome by death, depart from life, a father cannot save his son, hor kinsmen their relations. Mark! while relatives are looking. So the world is afflicted with death and decay, therefore the wise do not grieve, knowing the terms of the world.
वे लोग जिन पर मौत विजय प्राप्त कर लेती है , जीवन से चले जाते हैं , एक पिता अपने पुत्र को नहीं बचा सकता , न ही भाई - बन्धु अपने रिश्तेदारों को बचा सकते हैं । ध्यान रखो ! जब रिश्तेदार देख रहे होते हैं और गहन विलाप करते रहते हैं , एक - एक करके सभी लोग चले जाते हैं , जैसे की एक बछड़े को कसाई के यहाँ कटने के लिए ले जाया जाता है । इसलिए संसार मृत्यु और पतन से पीड़ित है , इसलिए बुद्धिमान लोग शोक नहीं मनाते क्योंकि वे संसार के नियम को जानते हैं ।
"Not from weeping nor from grieving will anyone obtain peace of mind; on the contrary, his pain will be the greater and his body will suffer. He will make himself sick and pale, yet the dead are not saved by his lamentation. He who seeks peace should draw out the arrow of lamentation, and complaint, and grief. He who has drewn out the arrow and has become composed will obtain peace of mind; he who has overcome all sorrow will become free from sorrow. and be blessed."
[ Source: Betty Renshaw
Values and Voice : A College Reader (1975) ]
" रोने और दुःख प्रकट करने से किसी को मन की शान्ति नहीं मिलेगी , इसके विपरीत उसका दर्द और ज्यादा बढ़ जाएगा और उसके शरीर को कष्ट होगा । वह स्वयं को कमजोर और बीमार कर लेगा , लेकिन मरे हुए लोग उसके विलाप से नहीं बचाए जा सकते । वह व्यक्ति जो शान्ति की तलाश करता है , उसे शोक , शिकायत और दुःख के तीर को बाहर निकालना चाहिए । यह व्यक्ति जिसने इस तीर को बाहर निकाल दिया है और शान्ति प्राप्त करेगा । वह जिसने सभी दुःखों को जीत लिया है , दुःखों से मुक्त हो जाएगा और धन्य होगा । "